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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१३३

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उत्तरी ध्रुव की यात्रा

१ सितम्बर को वे वहाँ पहुँचे। अन्तरीप के पास तो वे पहुँच गये, पर किनारे पर जहाज लगाने में उन्हें बड़ी आफतें झेलनी पड़ीं। जाड़े शुरू हो गये थे। बर्फ की वर्षा हो रही थी। समुद्र जम चला था। इस दशा में जहाज को किनारे ले जाना असाध्य नहीं तो दुःसाध्य जरूर था। हवा भी बड़े जोर से चलने लगी थी। अगर १ मील समुद्र जहाज चलाने लायक था तो दो मील जम गया था। खैर, किसी तरह राम राम करके ५ सितम्बर को जहाज किनारे लग गया।

वहाँ जाड़ों में रहने के लिए एक छोटा सा घर लकड़ी के तख्तों का बनाया गया। खाने पीने का सब सामान उसी में रक्खा गया। फिर यह ठहरी कि शेरीडन अन्तरीप से लेकर कोलम्बिया अन्तरीप तक जगह जगह पर खाने पीने की सामग्री रख आई जाय। इसके लिए बहुत सी बेपहिये की स्लेज नामक गाड़ियाँ तैयार की गई। उन में कुत्ते जोते गये। सामान लादा गया। और १५ सितम्बर से ५ नवम्बर तक वह सब सामान ढोकर थोड़ी थोड़ी दूर पर बनाये गये झोपड़ों में रखा गया। यह इसलिए किया गया, जिसमें लौटते वक्त खाने पीने का काफी सामान रास्ते में तैयार मिले। तब तक शिकार भी खूब खेला गया। कितने हो रीछ, खरगोश और बालरस नाम के दरियाई घोड़े मारे गये। वैज्ञानिक जाँच