पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
शिक्षा

शुरू कर दे तो हम उसकी मूर्खता का ढोल पीटने लगेगे और बहुत जल्द उसके बरवाद होने की खबर सुनने की आशा करेंगे। अथवा शरीरशास्त्र का अभ्यास किये बिना ही र्याद कोई चीर-फाड़ अर्थात् जर्राही का काम आरम्भ कर दे तो हमें उसकी ढिठाई पर अचम्भा होगा और उसके रोगियों पर दया आवेगी। परन्तु जो मानसिक, नैतिक और शारीरिक सिद्धान्त इस विषय के आदर्श हैं उनका ज़रा भी विचार न करके---उन पर कुछ भी ध्यान न देकर---बाल बच्चों के पालन-पोषण और विद्याभ्यास आदि कठिन काम यदि माँ बाप शुरू कर दे तो हमें न तो उनकी करतूत पर आश्चर्य ही होता है और न उनके अन्याय की पात्र उनकी सन्तति पर दया ही आती है।

आरोग्य-रक्षा के नियम माँ बाप को न मालूम रहने से उनके बाल बच्चों को जो भोग भुगतने पड़ते हैं, उनकी जो दुगर्ति होती है, उन पर जो आफत आती हैं, उनका ठौर ठिकाना नहीं। हजारों बच्चे तो माँ बाप की असावधानी और मूर्खता के कारण पैदा होते ही मर जाते हैं। जो बचते हैं उनमें लाखों अशक्त, निर्बल और जन्म रोगी होते हैं, और करोड़ों ऐसे नीरोग और सबल नहीं होते जैसे होने चाहिए। अब इन सबको आप जोड़ डालिए तो आप को मालूम हो जायगा कि माँ बाप की नादानी के कारण सन्तति को कितनी हानि उठानी पड़ती है, कितना दुःख