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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

शरीर की बनावट से वह जैसे अनभिज्ञ होती है वैसे ही जुदा जुदा दवाओं और चिकित्साओं का जो असर उस शरीर पर पड़ता है उससे भी वह अनभिज्ञ होती है---उसका भी ज्ञान उसे नहीं होता। इन बातों को न जानने से बच्चों को हर घड़ी जो कष्ट भोगने पड़ते हैं----उन पर हर घड़ी जो आफ़तें आती हैं---वे बहुत ही भयङ्कर हैं। इस अज्ञान के कारण जो परिणाम होते हैं उनको हम प्रति दिन अपनी आँखों से देखते हैं। वे छिपे नहीं। उनसे अधिक हानिकारक परिणाम और क्या हो सकते हैं? माँ को न तो यही ज्ञान होता है कि कौन सी मानसिक वृत्तियाँ भली हैं और कौन सी बुरी। और न उन वृत्तियों के कारण और परिणाम ही का ज्ञान होता है। अतएव मनोवृत्तियों को रोकने या उनके काम में विघ्न डालने से जो हानि बहुधा होती है वह हानि उससे कहीं बढ़ कर है जो भले बुरे की परवा न करके उन्हें यथेच्छ अपना काम करने देने से हो सकती है। अर्थात् यह प्रवृत्ति भली है या बुरी, इसका विचार न कर के बच्चे को अपनी इच्छा के अनुसार रहने देने से उतनी हानि नहीं होती जितनी कि बहुधा बेसमझे बूझे उसकी किसी प्रवृत्ति को---उसके मन के किसी झुकाव को---बुरा समझ कर रोकने से होती है। बच्चे को जो काम करने की आदत होती है और जिनसे उसे लाभ के सिवा हानि भी नहीं हो सकती, उनको करने से वह उसे रोकती है। वह समझती है कि