हैं। इतिहासों में इस तरह की बातें रहती हैं---राज्य के लालच से अमुक अमुक झगड़े फसाद पैदा हुए। उन का फल यह हुआ कि दोनों दल वालों की सेनाएँ खूब बहादुरी से लड़ीं। इन सेनाओं के सेनापतियों के अमुक अमुक नाम थे और उन के अधीन जो सरदार थे उन के अमुक अमुक। उन में हर एक के पास इतनी पैदल सेना, इतना रिसाला और इतनी तोपें थीं। उन्होंने अपनी अपनी सेना को लड़ाई के मैदान में इस क्रम से खड़ा किया था। उन्होंने अमुक अमुक युक्ति से काम लिया; अमुक अमुक तरह से धावा किया और अमुक अमुक तरकीब से वे पीछे हटे। दिन के इतने बजे उन पर अमुक प्रसंग आया, उन पर अमुक आफ़त आई और इतने बजे उन की ऐसी जीत हुई। एक धावे में अमुक सरदार काम आया; दूसरे में अमुक पल्टन कट गई। कभी इस दल का भाग्य चमका, कभी उसका। इस तरह भाग्य का उलट फेर होते होते अन्त में अमुक दल की जीत हुई। हर एक दल के इतने भादमी मर गये, इतने घायल हुए और इतने विजयी दल ने कैद कर लिये। अब अबतलाइए कि इस युद्ध-वर्णन में जो बातें लिखी गई हैं उन में कौन सी बात ऐसी है जिस से आप को यह शिक्षा मिल सकती है कि सार्वजनिक कामों में आप को कैसा बर्ताव करना चाहिए, इस में क्या कोई भी बात