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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

हाथी नज़र नहीं आया। दूर दूर से आदमियों के आने और शोर गुल मचाने से होशियार होकर सब हाथी न जाने कहाँ छिप रहे या भाग गये। इससे नाउम्मेद होकर वहाँ से सबको पड़ाव पर लोट आना पड़ा। उस दिन महाराजा बलरामपुर ने लाट साहब की दावत की। २६ दिसम्बर को खेदा नहीं हुआ। उस दिन छोटे लाट ने मामूली शिकार किया; हाथियों का नहीं।

२७ दिसम्बर को फिर हाथियों का पता लगा। खेदे के कप्तान नन्हेंखाँ हाथियों और बन्दूकचियों को लेकर सबेरे ही चल दिये। महाराजा १० बजे रवाना हुए और कोई एक बजे के क़रीब मौक़े पर पहुँचे। जब कोई जङ्गली हाथी देख पड़ता है और घात में आ जाता है तब सधे हुए हाथी उसकी गर्दन पर मोटे मोटे रस्से पक कर फन्दा लगाते हैं। ऐसे जितने हाथी थे व अपनी अपनी जगह पर खड़े किये गये। अनेक लोग तमाशा देखने आये थे। उनको भी सुरक्षित जगहों में खड़े होने का प्रवन्ध हुआ, यह सब कप्तान नन्हे खाँ ने किया। महाराजा और लाट साहब की दाहिनी और बांई तरफ सब शिकारी हाथी खड़े किये गये। नागेन्द्रगज और गजराज बहादुर नाम के दो विशाल गज महाराजा और सर जेम्स लटूश की रखवाली के लिए नियत हुए। सब लोग चुपचाप अपने अपने हाथियों पर बैठे। बैठे बैठे बहुत देर हुई। लाट साहब के सिवा और भी कई अँगरेज़