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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि


देता है। परन्तु इस प्रकार के बदले की प्रथा अच्छी नहीं समझी जाती। युद्ध के पूर्व तो उसका अवलम्बन बहुत ही कम किया जाता है।

इतना होने के बाद या तो मेल हो जाता है या युद्ध छिड़ जाता है। यदि युद्ध हुआ तो ऐसी अवस्था में शत्रु को युद्ध की सूचना देने की कोई आवश्यकता नहीं। १८९४ ईसवी में चीन जापान में युद्ध हुआ था। छेड़छाड़ २५ जुलाई से आरम्भ थी। इसी तारीख़ को चीन का एक जहाज डुबो दिया गया था। और दूसरा जापान ने छीन लिया था। परन्तु युद्ध-घोषणा, जिस की फिर कोई आवश्यकता न थी, जापान ने पहली अगस्त और चीन ने दूसरी अगस्त को की थी। ऐसी ही बात गत रूस- जापान युद्ध में भी हुई थी। ६ फरवरी १८९४ को रूस और जापान का राजनैतिक सम्बन्ध टूट चुका था। तदनन्तर रूसियों की तरफ से कुछ छेड़ छाड़ भी हुई। परन्तु जापान ने युद्ध की घोषणा ११ फरवरी १९०४ को की।

जो सैनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हो कर लड़ने के लिए तैयार रहते हैं वही युद्ध में शरीक योद्धा समझे जाते हैं। युद्ध के नियमों के अनुसार शत्रु-दल के योद्धा मारे जाने और शरीर-दण्ड पाने के पात्र समझे जाते हैं। मरण आने पर वे युद्ध के कैदी समझे जाते हैं। और