पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१०५

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तव शक्ति लहि पामोल । यवि परत अद्भुत रोल ॥ राहि तृण-सविन्दु तुपार । गुहि देत मुक्ताहार ।। जह सुन्दरी ने नैन । वह रचत तहं सुख दैन । जलजातो जुग पात । तह गोल मनि सुविभात ॥ येहि भाति पौतुप पेलि । सर नियति को अवहेलि । जो परत नर सुख मानि | सो तव कृपा को जानि ।। तुम दान परि आनन्द । हिय को करहु सानद ॥ नहि यह विषम ससार । तह बहा शान्ति बयार ।। प्रसाद वाङ्गमय ॥४०॥