पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१२०

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इन पुतरिन पै आपने चरनन के रज गार ।। निठुर, हृदय तुम ले चले, इत आसू के धार । तेरे पथ को सीचिह, रखिह ताहि सँवार ॥ क्रीडा कमल हृदय भयो, तेरे करको मीत । सर सो विलगानो अहै, सोच्यो दै रस प्रीत ।। जाहु, हमारे आह ये, रच्छक तुम्हारे पास । जो लेऐहै खीचि पुनि, तुमको हमरे पास ॥ चित्राधार ॥५५॥