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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१२५

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भान्त तरग तुग माला गिजित । पेनिल गम्भीर मिंधु सिाद बाधिा ।। हेरि पुहू म गाविस जिगि भयभीत । दीप पय दारहिं एयत राप्रीत ।। यमार सरग लगि भीत तिमिजन । निराश हृदय धारि सतापिन मा ।। शान्ति निगा महिपो पा राज चिन्द स्प। तुमहिं लगत मध्या ताग शुभरप॥ प्रसाद वाङ्गमय ।।६०