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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१२७

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श्याम सलोने गगन हृदय महँ चन्द महाछवि पावै । श्माम सुंदर हिय मनु व्रजवाला प्रेम विम्ब दरसावै ।। शून्य हृदय विरही को तामैं प्रिया बदन सुख देवै । तैमहि शून्य विशाल गगन महं चन्द हिलोरे लेवे ॥ राजत सुन्दर चन्द अमन्द सुअक महा छबिधारी। चन्दवदनि के भाल विन्दु सुख सदन सुज्यो मनहारी।। रावा निशि ललना को सुन्दर के कपोल मनभावै । अक तासु तिल रूप धारि अति माधुरता मरसावै ॥ प्रसाद वाङ्गमय ।।६२॥