होते देशो को परस्पर दूरी घटाते जा रहे थे और मानव समुदाय की देशवाची जातिया एक दूसरे के समीपतर आती जा रही थी। ऐसी दशा मे अन्योन्य-सघट्ट और विनिमय अवश्यभावी थे तब भापा के स्वरूप विकास और अभिव्यक्ति की विधाओ म अनुरूप परिवत्तन भी स्वाभाविक हुये। अग्रत , हिन्दी साहित्य मे आगत घटनामो को इस वैश्व परिप्रेक्ष्य मे देखना समुचित होगा जिसमे आगामी परिवत्तनो की पीठिका प्रस्तुत हो रही थी। हिन्दी सरचना को प्रवृत्तियां सजग होने लगी, उसका गद्य देह गदराने लगा और काव्य-पुम्प बज के तमालकुंजो से निकल कर आलोक के नये आयाम ढूढने लगा। अब राजनीतिक-विज्ञान और वैज्ञानिक राजनीति यहाँ की स्ट विचार शृखलाओ के झकझोर कर टूटने और नये सिरे से अपनी पुनरचना करने को बाध्य कर रहे थे। यहां की सामाजिक राजनीतिक दशा-दुबलता और आर्थिक सम्भा- वनाओ का आकलन विश्लेषण कर सोलहवी शती समाप्त होते-होते अग्रेज एक निष्कप पर आ चुके थे और इस गोलाद्ध के प्रति वे एक व्यापक नीति को नियोजित और चरिताथ करने लगे थे। उनके स्पर्डी हुये डच, फरासोसी और पुतगाली । किन्तु, विपुल नौशत्ति अपनी कूट-मेघा तथा अन्यान्य राजनीतिक योगायोगो के बल अग्रेजो ने यारोप मे ही उन्हे यथासम्भव उलझाये रखा और यहा भी आगे नहीं बढने दिया। अग्रेज तब मनसा और वाचा भी, अपने को यहाँ का नियायर मान चुके थे और कमणा उनके पांव शासन-पीठ पर जमने लगे थे। सनहवी शती को वे अपने पूर्वी साम्राज्य के प्रारम्भिक दिन कहते थे ।' 1 At present time it may be not altogether uninteresting to recall the terms in which our country men addressed the king of Ava nearly 200 years ago The letter goes on to say your majesty having been plaeased to grant your special favours to Honourable English company whose servant I am at the time this letter was despat ched the king of Ava was by no means a powerful mona rch But in those early days of our Eastern Emp re the the principale of Omneignotum pro magnificio was force in very cogent operation ( Times of India - April 12th 1875 ) प्रसाद वाङ्गमय ॥१२॥
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