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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१४

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एलिजावेथ-शासन के अन्तिम दिनो मे ईस्ट इण्डिया कम्पनीगठित हुई भारत से व्यवहार करने का रानी ने उसे पन्द्रह वर्षों का इजारा दे दिया, प्रकारान्तर से निर्माणाधीन साम्राज्य की नीव तैयार करने का यह ठीका था। अपने समय की प्रबल नीशक्ति के सरक्षण मे कुल ७२००० पौड और पांच जहाजो को पूंजी से 'कम्पनी का भारत- अभियान चालू हुआ समापन के समय "कम्पनी" की पूँजी विपुल जहाजी बेडे के अतिरिक्त छ लाख पौड था क्लाइव और हेस्टिग्स जैसा के अनेक निजी कोषो म कितनी राशि थी इसके आक्डे तो सुलभ नही किन्तु उस देश की सहसा समद्धि से एक अनुमान लग सकता है। ईसवीय १६०१ मे कम्पनी यहा आई और १६१२ मे उसकी पहली कोठो सूरत म खुली एसी कोठियो को वे फैक्टरी कहते थे, तथ्यत उनम साम्राज्य निर्माण के कील काटे प्रस्तुत होते थे। जब वे भारत परिक्रमा में मद्रास पहुंचे तब उस अबोध हिन्दू राजा नगर उनके हाथो वेंच दिया उस भूमि पर पहला आग्ल-दुग फोट-सेंट-जाज १५४० मे बना । "कम्पनी की काउन्सिल वहा से व्यवसाय और कूटनीति का ताना-बाना ल साम्राज्य की चादर बुनने लगी। "पिला साकिया पुतगाली शराब हुबाबो प उडता है जिसके शबाब" में आक्ण्ठ डूबे, डूबते मुगलो ने एक मामूली से फरमान क लहजे मे मुवई वस्श दिया और पुतगाल उसका जिमीदार हो गया किन्तु अग्रजो की भांति उनकी सागरीय-दृष्टि होती तो पुतगाल अपने अग्रेज जामाता राजा चाल्स को दहेज मे मुम्बई न देता। फिर, अरव समुद्र के इस पत्तन पर पुतगाली प्रभाव का ऐतिहासिक अथ कुछ दूसरा ही होता। अब मुबई चौर मद्रास मे बेठे गोरो के सम्मुख पूर्वी जगत का समृद्धि निचय भारत का उत्तरापथ था जिसकी अगला उन्होंने दक्षिण और पूर्व से खोलना प्रारम्भ किया, इस नई ऐतिहासिक करवट का कारण अग्रेजी नीशक्ति और उनके उन्नत यन्त्र-कौशल हो नही समया- नुसारी क्षिप्र-गतिचार भी रहे। नितराम्, अन्न के बखारो और मणि हिरण्य की थैलियो से भरे पूरे गोड-मगध-अन्तर्वेद-पचनद की साहसिक यात्रामे अग्रेजो का द्वितीय पग उठा। कटक मे दिल्ली के 'गुमाश्त" आगामुहम्मद के पांव चूम अग्रज सल्तनत की छाती पर चढने लगे। विदेशो में हो रही यान्त्रिकी भौतिक प्रगति और उनके चलते प्राक्कथन ॥१३॥