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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१५

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अनिवाय सम्भावनायें यहा के 'नशेमन' शासबो ने बेमतलब की बात समझी उसे समीप से जा कर देखने समझने में एक और मुसलमानी आरामतलबी और 'मिजाजेखास' तो दूसरी और हिन्दुओ का तथाकथित धम, बाधक बने । वेठन की सात परतो मे बंधा पचतन्त्र पुकार रहा था. , विद्या वित्त शिरप तावन्नाप्नाति मानव सम्यक् यावद् व्रजति न भूमौ देशाद्देशान्तर हृष्ट अब भारत को पूरी तौर से कद करने के लिये अग्रेजी कारखानो और वहाँ के शासनयन्त्र के सम वय सम्मादन पूवक बनी 'लेनडारी सागर की लहरो पर चढती चली आ रही थी। अग्रेजो की उस साहसिक्-यात्रा मे हुगली-क्लात्ता कासिमबाजार मुर्शिदाबाद, सिराजुद्दौला मीरजाफर-जगतसेठ-अमीचद और पलासी को क्लाइव-कथा आती है पटना बक्सर पार क्येि जाते है और शामे- अवध लखनऊ की शामत आती है और फिर चिरागे दिल्ली की आखिरी लौ मराठा तूफान और अग्रजी आधी की टक्कर मे वुझ जाती है और तब, वह 'सल्तनत नरेजहाँ' की खूब हो कर खराब हो जाती है। पूर्वीय गालाद्ध की सचित समृद्धि और उसके जीवन्त स्रोता का दाहन एक विज्ञान सम्मत और अपने मौलिक ढग से अग्रेज करना चाहते उन्हें न तो किसी गजनवी या नादिरशाह की भाति यहाँ से लूट कर भागना था न मुगलो की भांति यहाँ की संस्कृति म घुल कर यही बस जाना था अपितु, यहा एक इन्द्रकोल गाड विश्वजनीन परिस्थितियो के धात प्रतिघात देखते इच्छानुसार यथाशक्ति कालव्यापी आदोहन करना था ऐसे घटनाक्रम की प्ररिका, एक एतिहासिक मोड लाने वाली अग्नेजी जीद्यागिक क्रान्ति थी और जा कि पक्षान्तरत सामन्तशाही के विकृत शव से पूजीवाद के महाकीट का उद्भव था। जब, विशाल वाष्पीय अभियन्त्रणो से इगलैण्ड के कारखाने अभिभूत हो गये, उत्पादन की गति दिन दूनी रात चौगुनी बढने लगी तब अग्रेजो के सम्मुख दो प्रश्न थे, कच्चे माल का आयात और उत्पादित सामग्री का निर्यात और, भारत इन समकालीन प्रश्नो का उत्तर बडी सरलता से बन गया। यह क्राति प्राय अठारहवी शती के मध्य से चालू रही यद्यपि अन्य देशा ने अनुगमन की चेष्टायें को किन्तु अग्रेज दौड म आगे प्रसाद वाङ्गमय ॥१४॥