- जा चुके थे और उनकी प्राय सभी योजनायें आश्चयजनक ढग से चरिताथ होती गईं। उस उदीयमान राष्ट्र की दो भुजायें औद्योगिक कर्मान्त ( कारखाने ) और उनके सरक्षण-पोषण के लिये विपुल नौशक्ति प्रचड होती गई। मैक्मियो को चादी, ढाका का मलमल, मुर्शिदाबादी सिल्क हो नही सर्वाधिक सामरिक महत्व की वस्तु पटना का शोरा, जिसमे कम्पनी को आधी पूंजी लग रही थी, ले जाना और उत्पादनो से उन सावदेशिक बाजारो को पार देना अंग्रेजी साहस और धैय का परिणाम था जो पृथग्ग्रीव हो कर भी एकोदर होता है। शोरे मे अधिकाधिक पूजी लगने की वृत्ति को आज के शस्त्रीकरण-ससार का प्रजापति कहा जा सकता है । अग्रेज सदैव तोपो की वारद उष्ण और विर बनाये रखने में विश्वास करते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का "तिजारती" उपक्रम अव सैनिक हस्तक्षोप के माध्यम से राजनीतिक प्रभुत्व बनने वाला था। बडे मस्तूलो बाली महानौकाओ का स्थान भाप से चलने वाले शनि मडित भीमकाय जहाज ले चले और टोपीदार वारुदी कडवीना ( कारबाइन ) को जगह कारतूसी राइफिलें लने लगी और भारत के पास उन्ही से प्राप्त ये रणोपकरण यदि थे भी तो अल्प और पारस्परिक निणयो के लिये ही प्रयुक्त होते रहे। टीपू या मिराजुद्दौला की प्रतिकूल गतिविधियो को पहली उभार मै हो अग्रेजो ने कौशल से दबोच दिया। ऐसे उपकरणो और टेलिग्राफ आदि साधनो से सम्पन्न हो कर अपनी महत्वाकाक्षा और साहस को निर्यायक सीमा तक ले जाने के अथ अग्रेज अब समय और सन्नद्ध थे। उन्होने अपने साहस हमारी क्षमता और विचारधारा का गुणनफल निकाल लिया था। भारत की दशाआ और अवस्थामा का त्रिटिश-पालामेट ने जब ईस्ट इडिया कम्पनो के 'टेस्टट्यूब' म रासायनिक परीक्षण पूरा कर लिया तब एव लघुवर्गीय प्रभुता-सम्पन्न कम्पनी निरथक हो गई। अग्रेजी- शासनतन्त्र ने अपने मौलिक कौशल से सामाजिक न्याय और धम-सरक्षण की दुहाई देते यहाँ का शासन स्वायत्त कर लिया इम्पीचमेट का नाटक हुआ बव ने लम्बा नान्दीपाठ किया हेस्टिग्स द्वारा कृत-कारयित कर्मों वा ऐसा चित्र सीचा गया जिसे देख रमणियाँ मूच्छित हो गई। देशे-विदेश में अग्रेजो के न्याय निष्ठा का यश फले, 'कम्पनी' के भागीदारा के प्रति शासन 'पाक्दामन' भी रहे साथ ही विशाल माम्राज्य अनायास मिल जाय ऐसे "पवित्र" उद्देश्यो से पार्लामट ने उपनिवेग- प्राक्कथन ॥१५॥
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