पय त एवं अद्धगामेवीय शृपला थी जिसकी वडियो TT निमाण भामा के प्रति निष्ठा और उसकी गेवाश्रित कृपापात्रता के गाने पे आधीन रहा आग्ल सिंहासन के प्रति निष्ठा और भक्ति वहा एकमेव बहता बनी थी । अल्पवित्त या शून्य वित्त कृषक जिमीदारो ग्राम और अतिचार की छाया म अपने टटे बैल पर धरती माता की छाती कुरेदता अपने क्षाम ण्ठ सोचने को पिलखता रहा वणिक समुदाय विदेशो आयाता के अस्वस्थ बहाव मे सहायक बन अन्धी बिल्ली की भांति घर में ही शिकार करता रहा। छोटे से बडे पयन्त सभी शोषक-वग मात्स्य न्याय मे परस्पर एक दूसरे को खाने से उपक्रम म लगे थे आर्थिक अराजक्ता की ऐसी दशा म भारत अग्रेजो को गाठ बंधा। क्लात्ता-चम्बई के उपकण्ठो पर विपुल कल कारखाने चालू हो गये और ग्रामीण-कृषक थमिक बनने लगे वणिक् वाणिज्य को वस्तुयें लेकर 'परदेस माने जाता था और ग्रामीण वहाँ अपना श्रम बेचने जाता था समुद्रपारीय देशो म भी, क्योकि उसे गन्ने की खेती आती थी और श्रम मूल्य भी नगण्य था। जिमीदार देश म बेगार लेता था और उसके प्रभु समुद्र पारोय उपनिवेशो म । भारत को सात पोढ़िया इस अन्धकार म चीखती चित्लाती विलीन हो गई। शाब्द-व्यवहार मे, मुसलमानी सत्तनत के वारिम ब्रिटिशस्ल ने यथास्थिति विद्यमान रखने म मुविधा देखी। सत्तनत से पम्पनी जिस भापा म व्यवहार करती थी उसमे और अंग्रेजी म प्राय समान गति रखने वाले 'राइटरा' से कलक्ता की वह राइटस विडिग भरी रहती थी जहा शासन के सम्पक-सूत्र जुडे थे और निरन्तर शासनादेशो का प्रवाह जारी था। वह भवन, एक प्रकार से बानू उत्पादन का अंग्रेजी कारखाना बना । राजकीय व्यवहार की वह भाषा जनसामा य के कितनी ममोप है, इसी चिन्ता गोरे क्यो करते और बाबू पदवाच्य काले माहब तो उनके अनुवर्ती ही थे। ऐसी भाषा नीति के अनुमोदन म, काशी के राजा शिवप्रसाद को 'स्टार आफ इण्डिया की पदवी मिली। उनके कृतित्व के शोब म ज्ञातव्य होगा कि उनमे पटना मुर्शिदाबाद को जगतसेठ वाली वह आग्ल समथक परम्परा थी जिसने हेस्टिग्स को मौत से बचा कर डूवते अग्रजी बेडे को उबारा था ( द्रष्टव्य भाषा कल्पसूत्र, नवलकिशोर प्रस १८८७ ) । वस्तुत यह सितार ए हिन्द का खिताव उस वश की सेवाओ को तुलना मे कुछ नही था यदि उनके स्थान पर कोई अग्रेज होता तो नेल्सन जैसी प्रतिष्ठा का अधिकारी बनता। प्रमाद वाङ्गमय ।॥१८॥
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