पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुर्थ दृश्य ( महाराज हरिश्च द्र सिंहासनासीन । शुन गैफ को साय लिये हुए रोहित का प्रवेश-) रोहित हे नरेन्द्र हे पिता पुत्र यह आपका रोहित सेवा म आ गया। विनम्र हो करता अभिवादन है, अब कर दीजिये क्षमा इसे । है पशु ल्कर आया यहाँ । हरिश्चन्द्र रे पुत्राधम 1 तूने आज्ञा भग की मेरी, अन तू योग्य नही इस राज्य के रोहित देव । दिया जाता वलि में जो मै तभी तो क्या पाता राज्य | न ऐसा कीजिये। सुनिये, मैने रक्षा की है धम्म की नही आप होते अनुगामी निरय के। प्रसाद वाङ्गमय ॥ ११८॥