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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१९६

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महाप्राण जीवो पर प्रकृति करो से निर्मित कानन देश की स्निग्ध उपल शुचि स्रोत सलिल से धो गये, जैसे चन्द्रप्रभा में नोलाकाश भी उज्ज्वल हो जाता है छुटी मलीनता। के कीर्ति सुकेतु से ऊँचे तरवर खडे शैल पर झूमते। आय्य जाति के इतिहासो के लेख-सी जल स्रोत-सी बनी चित्र रेखावली शल शिखाओ सुन्दर है दीखती। करि-कर-सम कर-बीच लिये करवाल है कौन पुरुष वह बैठा तट पर स्रोत के दोनो आखें उठ-उठ कर बतला रही "जीवन भरण" समस्या उनमें है भरी। यद्यपि है वह वीर श्रात तब भी अभी हृदय यका है नही, विपुल बल पूण है, क्योकि कमफल-लाभ एक बल है स्वय । करुणामिश्रित वीरभाव उस बदन पर अनुपम महिमा-मण्डित शोभित हो रहा जन्म भूमि की आर महा करणा भरो यवन कालानल के कोप-सी दोनो आखे, तिस पर भी गम्भीरता भरा है अपने ही कतव्य का आजीवा जिसको वह करता आ रहा । कहो कौन है ?-आर्यजाति के तेज-मा? देशभक्त, जननी का सच्चा भारतवासी। नाम बताना पडेगा मसि मुख मे ले अहो लेवनी क्या लिखे । प्रात स्मरणीय सुनाम को। नही, नही, होगी पवित्र लिखकर स्वर्णाक्षर मे नाम 'प्रताप' का । कर अपने 'प्रताप' को विस्मत सो गये अरे । कृतघ्न बनो मत उसको भूल के यह महत्त्वमय नाम स्मरण करते रहो। महाराणा का महत्त्व ।। १३३॥ शनु प्रति ) उस पविन यह लग्वनी