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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/१९८

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लहर हो सुनाव छोड, कूदना तिनके रण मे टूटे ढाल तुम्हारी जो कभी तो बचने के लिए शत्रु के सामने पीठ करोगे? नहीं, कभी ऐसा नही, दृढ-प्रतिज्ञ यह हृदय, तुम्हारी ढाल बन तुम्हे बचावेगा। इस पर भी ध्यान दो घोर अंधेरे मे उठती जब तुमुल घात प्रतिघात पवन का हो रहा भीमकाय जलराशि क्षुब्ध हो सामने कणधार रक्षित दृढ हृदय को का अवलम्ब ले घोर सिधु मे, क्या बुधजन का काम है ? परम सत्य को छोड न हटते वीर हैं। सालुम्बाधिपते । क्या अव होगा यही क्षुद्रकम धमभूमि मेवाड मे? और 'अमर' ने ही नायक होकर स्वय किया अधम इस लज्जाकर दुष्कम को। बस बस, ऐसे समाचार न सुनाइए शीघ्र उसे उसके स्वामी के पाम अव भेज दीजिए, गिना एक भी दुग्व सैनिक लोगो से मेरा सदेश यह कहिए, कभी न कोई क्षत्रिय आज से अवला को दुख दें, चाहे हा शनु की शनु हमारे यवन-उन्ही से युद्ध है यवनीगण से नहीं हमारा द्वेष है। सिंह क्षुधित हो तब भी तो करता नही मृगया, डर से दबी शृगाली-वृन्द की।" दिये। . "सुन्दर मुख की जय होती सवत्र ही विजित, उसे पर सक्ता कोई भी नहीं। रमणी के सुकुमार अग केशरी सम्हल-सम्हल पर करता प्रेम प्रकाश है, महाराणा का महत्त्व ॥ १३५॥ पर