पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२०४

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- भिड जाना मन्मुख का कभी वीरभूमि मेवाड-विजय के हेतु, उस दिन सचमुच मुझे असीम प्रसनता हुई कि, में भी देखूगा उस वीर को, जो अब तक होकर अबाध्य सम्राट का करता है सामना बडे उत्साह से । सचमुच शाहशाह एक ही शतु वह मिला आपको है कुछ ऊँचे भाग्य से, पवत की कन्दरा महल है, वाग हैं- जगल ही आहार-घास, सच्चा हृदय सहायक, उसके साथ है। मुगल-वाहिनी से होता जब सामना उसका कत्तव्य था। सुकुमारी कन्या औ' बालक छिन जाता आहार बना जो घास से। वे भी जब है अश्रु बहाते नही तो होता है पापाण हृदय द्रवमय कभी । तिस पर भी उसके इस हृदय महत्त्व का कैसे मे वणन कर सक्ता हूँ प्रभो। राजकुंवर ने वेगम को बन्दी क्यिा फिर भी सादर उसे भेज कर पास में मेरे, मुझको कैसा है लज्जित किया, मनोवेदना से में व्याकुल हो उठा, इसीलिये यह रोग हुआ है असल इससे छुटकारे का उपाय आज्ञा हो तो मैं भी कुछ विनती करूं।" हंसे और बोले अक्बर-"हा हां कहो, सय मुयको है विदित, हुआ जो-जो वहा ।" कहा खानग्वाना ने-"राणा ने कभी- क्यिा नहीं आक्रमण आप के राज्य पर । अपने छोटे राज्य तुष्ट है, और किमी से भडक रही हो शत्रुता तो वह अपने भुजवल से जो कर म करे, शिथिल होगा। तो भी वल आपका मे। dic मात्र से महाराणा का महत्व ॥१४१॥