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रजनी-गंधा दिनकर अपनी किरण-स्वण से रन्जित करके पहुंचे प्रमुदित हुए प्रतीची पास सँवर के प्रिय सगम से सुखी हुई आनन्द मानती अरुण राग रज्जित पोल से शोभा पाती दिनकर-कर से व्यथित बिताया नीरस वासर वही हुए अति मुदित विहगम अवसर पार कोमल कलरव किया बडा आनद मनाया किया नीड म वास, जिन्ह निज हाथ बनाया देखो मथर गति से मारुत मचल रहा है हरी-हरी उद्यान-लता मे बिछल रहा है कुसुम सभी खिल रहे भरे मकरन्द मनोहर करता है गुजार पान करके रस मधुकर देखो वह है कौन कुसुम कोमल डाली मे किये सम्पुटित वदन दिवाकर किरणाली मे गौर अङ्ग को हरे पल्लवो बीच छिपाती लज्जावती मनोज्ञ लता का दृश्य दिखाती प्रसाद वाङ्गमय ।।१६८।।