पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नहीं डरते , क्या हमने कह दिया, हुए क्यो रुष्ट हम बतलाओ भी ठहरो, सुन लो वात हमारी, तनक न जाओ, आमो भी रूठ गये तुम, नही सुनोगे, अच्छा । अच्छी बात हुई सुहृद, सदय, सज्जन मघुमुप थे मुझको अपतक मिले कई सबको था दे चुका, बचे थे उलाहने से तुम मेरे वह भी अवसर मिला, कहूंगा हृदय खोलकर गुण तेरे क्हो न कब गिनती थी मेरी सच कह्ना कि 'मुझे चाहो' मेरे खौल रहे हृत्सर मे तुम भी आकर अवगाहो फिर भी, क्य चाहा था तुमने हमको, यह तो सत्य कहो हम विनोद की सामग्री थे वेवल इससे मिले रहो तुम अपने पर मरते हो, तुम कभी न इसका गव करो कि 'म चाह मे व्याकुल हैं यह गम मांस अब नही भरो मिथ्या हो हो, विन्तु प्रेम का प्रत्याख्यान नही करते घोसा क्या है, समय चुके थे, फिर भी किया, नहीं डरते ' कानन कुमुम ॥२०१॥