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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२६१

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महाकवि तुलसीदास अखिल विश्व मे रमा हुआ है राम हमारा सकल चराचर जिसका क्रीडापूण पसारा इस शुभ सत्ता को जिसने अनुभूत किया था मानवता को सदय राम का रूप दिया था नाम-निरूपण किया रत्न से मूत्य निकाला अन्धकार-भव-बीच नाम-मणिन्दीपक बाला दीन रहा, पर चिन्तामणि वितरण करता था भक्ति-सुधा से जो सन्ताप हरण करता था प्रभु का निभय सेवा था, स्वामी था अपना जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना प्रबल प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का अनुभव था सम्पूण जिसे उसकी विभुता का राम छोडकर और की जिसने कभी न आस को 'राम-चरितमानस-कमल जय हो तुलसीदास की प्रसाद वाङ्गमय ॥२०२।।