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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२६९

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1 अपने सुकृत-फल के समान मिले उन्हे फल ढेर से मीठे, नवीन, सुस्वादु, जो सचित रहे थे. देर से हो स्वस्थ प्रात क्म से जव राम पणकुटीर म आये टहल मन्दाकिनी-सट से प्रभात-समीर म देवा कुशासन है विछा, फल और जल 'प्रस्तुत वहा है जानकी भी पास, पर लक्ष्मण न दिखलाते वहा - 7 सीता ने तब खोज लिया सौमित्र को तर-समीप मे, वीर विचित्र चरित्र को 'लक्ष्मण | आओ वत्स, कहा तुम चढ रहे' प्रेम भरे ये वचन जानकी ने कहे 'आर्य, होगा स्वादु मधुर फल यह पका देखो, अपने सौरभ से है यह छवा' लक्ष्मण ने यह कहा और अति वेग से चले वृक्ष की ओर, चढे उद्वेग से ऊंचा था तम्राज, सधन वह था हरा फल फूलो से डाल पात से था भरा लक्ष्मण तुरत अदृश्य उसी मे हो गये जल जाल बीच बिमल विधु से हुए टहल रहे थे राम उसी ही स्थान मे कोल्हाहल रव पडा सुनाई कान मे चक्ति हुए थे राम, बात न समझ पडी लक्ष्मण की पुकार तबतक यह सुन पडी- 'आय, आय, बस धनुष मुझे दे दीजिये कुछ भी देने मे विलम्ब मत कीजिये' कहा राम ने-'वत्स, कहो क्या बात है सुनें भला कुछ, कैसा यह उत्पात है प्रसाद वाङ्गमय ।। २१२॥