पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२७०

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लक्ष्मण ने फिर कहा-'देर मत कीजिये आया है वह दुष्ट मारने दीजिये' 'कौन ? कहा तो स्पष्ट, कोन अरि है यहा ?' कहा राम ने—'सुनें भला, वह है कहा' 'दुष्ट भरत आता ले सेना सग म रंगा हुआ है क्रूर राजमद रग म उसका हृद्गत भाव और ही आय है आता करने का कुछ कुत्सित काय है' सुनकर लक्ष्मण के यह वाक्य प्रमाद से- भरे, हंसे तव राम मलीन विपाद से कहा-'उतर आअ. लक्ष्मण उस वृक्ष से हटो शीघ्र उम भ्रम पूरित विपवृक्ष से' लक्ष्मण 'नीचे आकर वोले रोप से- 'वनवामी है हुए आप निज दोप से' भरत इसी क्षण पहुँचे, दौड समीप म बढा प्रकाश सुभ्रातृस्नेह के दीप मे चरण स्पर्श के लिए भरत भुज ज्या वढे राम-चाहु गल-बीच पडे सुस से मढे अहा ! विमल स्वर्गीय भाव फिर आ गया नील कमल मकरन्द विन्दु से छा गया । । 1 - my कानन कुसुम ॥२१३॥