पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२७२

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अहा । खेलता कौन यहा शिशु सिंह से आयवृन्द के सुन्दर सुखमय भाग्य सा कहता है उसको लेकर निज गोद मे- 'खोल, खोल, मुख सिंह-बाल, मै देवकर गिन लूँगा तेरे दातो को है भले देखू तो कैसे यह कुटिल कठोर है' देख वीर बालक के इस औद्धत्य को लगी गरजने भरी सिंहिनी क्रोध से छडी तानकर बोला बालक रोप से- 'बाधा देगी क्रीडा मे यदि तू कभी मार खायगी, और तुझे दूंगा नहीं- इस बच्चे को, चली जा, अरी भाग जा' अहा, कौन यह वीर बाल निर्भीक है कहो भला भारतवासी। हो जानते यही 'भरत' वह वाला है, जिस नाम से 'भारत' सज्ञा पडी इसी वर भूमि की कश्यप के गुरुकुल मे शिक्षित हो रहा आश्रम मे परकर कानन म घूमकर निज माता की गोद मोद भरता रहा जो पति से भी बिछुड रही दुर्दैव-वश जगल के शिशुसिंह सभी सहचर रहे रहा घूमता हो निर्भीक प्रवीर यह जिसने अपने बलशाली भुजदड से भारत का साम्राज्य प्रथम स्थापित किया वही वीर यह बालक है दुष्यन्त का भारत का शिर-रत्न 'भरत' शुभ नाम है कानन कुसुम ॥ २१५॥