पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२७३

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5 शिल्प-सौन्दर्य कोलाहल क्यो मचा हुआ है ? घोर यह महाकाल का भैरव गजन हो रहा अथवा तोपो के मिस से हुकार यह करता हुआ पयोधि प्रलय का आ रहा नहीं, महा सघषण से होकर व्यथित हरिचन्दन दावानल फैलाने लगा आयमदिरो के सव ध्वस बचे हुए धूल उडाने लगे, पडी जो आँस म- उनके, जिनके वे थे खुदवाये गये जिससे देख न सकते वे क्त्तव्य-पथ दुर्दिन-जल धारा न सम्हाल सकी अहो बालू को दीवाल मुगल साम्राज्य की आर्य शिल्प के साथ गिरा वह भी जिसे, अपने कर से खोदा आलमगीर ने मुगल महीपति के अत्याचारी, अवल प्रसाद वाङ्गमय ॥२१६ ॥ .