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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२८०

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वीर बालक भारत का सिर आज इसी सरहिन्द मे गौरव मडित ऊँचा होगा चाहता अरण उदय होकर देता है कुछ पता करुण प्रलाप करेगा भैरव घोपणा पाञ्चजन्य वन बालक-कोमल-कठ ही धर्म घोपणा करेगा देश जनता है एक्न दुर्ग के सामने आज म मान धम का बालर-युगल-वरस्थ है युगल वालको को कोमल ये मूत्तियां दपपूण वैमी सुन्दर हैं लग रही जैसे तीव्र मुगन्ध छिपाये हृदय म चम्पा की कोमल लिया हो शोभती वानन कुमुम ॥ २२३॥