पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२८१

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सूबा न कुछ कर्कश स्वर मे वेग से कहा--'सुनो वालको, न हो बस काल के बात हमारी अब भी अच्छी मान लो अपने लिये किवाडे खोलो भाग्य के सब कुछ तुम्हे मिलेगा, यदि सम्राट की हागी करणा, तुम लोगा के हाथ है उसे हस्तगत करा, या कि फेको अभी किसने तुम्हे भुलाया है ? क्यो दे रहे जानें अपनी, अव से भी यह साच लो यदि पवित्र इस्लाम धम स्वीकार है तुम लोगो को, तर ता फिर आनन्द है नही, शास्ति इसको केवल वह मत्यु है जो तुमको आशामय जग से अलग ही कर देगी क्षण भर मे, सोचो, समय है अभी भविष्यत् उज्ज्वल करने के लिये शीघ्र समझार उत्तर दा इस प्रश्ना वाहगुर की शान्त महा स्वर्गीय शान्ति की ज्याति स आलोस्ति हो गया सुवदन कुमार का पैतृक रक्त प्रवाह-पूण धमनी शरत्काल के प्रथम शिका सा हसो फट गई मुग पर 'जारावरसिंह के कहा-'यवन | क्या व्यथ मुझे समझा रहे शिक्षा मेरी पूण है उसके चरणा की आमा हृत्पटल पर अस्ति है, वह सुपथ मुय दिम्बला रही परमात्मा की इच्छा जा हा, पूण हो' कहा धूमकर फिर लघुभ्राता से'कहा, क्या तुम हा भयभीत मृत्यु के गत से गडने म क्या कष्ट तुम्ह होगा नहीं' शिशु कुमार ने कहा-'वडे भाई जहाँ, वहां मुमे भय क्या है ? प्रभु की कृपा स' O प्रसाद वाङ्गमय ॥२२४॥