पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२८४

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किसका है आगमन अहा आनन्दमय मधुर मेघ-गजन मृदङ्ग है वज रहा झिल्ली वीणा बजा रही है क्यो अभी तूयनाद भी शिखिगण कैसे कर रहे दौड दौडकर सुमन-सुरभि लेता हुआ पवन स्पश करना किसको है चाहता तरुण तमाल लिपटकर अपने पन मे किसका प्रेम जताता है मानन्द से रह रहकर चातक पुकारता है किसे- मुक्त कठ से, किसे बुलाता है कहो रहो रहो यह झगडा निबटेगा तभी छिपी हुई जब ज्योति प्रकट हो जायगी हां, हाँ, नीरद वृन्द, और तम चाहिये कोई परदे वाला है यह आ रहा परदा खोलेगा जो एक नया नही- जगत रङ्गशाला मे, मङ्गलपाठ हो द्विजकुल चातक और जरा ललकार दो- 'अरे बालको इस सोये ससार के जाग पडो, जो अपनी लीला खेल में तुम्हे बतायेंगे उस गुप्त रहस्य को- जिसका सोकर स्वप्न देखते हो अभी मानव-जाति बनेगी गोधन, और जो बनकर गोपाल घुमावेगे उन्हे- वही कृष्ण हैं आते इस ससार मे परमोज्ज्वल कर देंगे अपनी कान्ति से अन्धकारमय भव को, परमानन्दमय कम-मार्ग दिखलावेगे सब जीव को यमुने । अपना क्षीण प्रवाह बढा रखो और वेग से बहो, कि चरण पवित्र से सङ्गम होकर नील कमल खिल जायगा व्रजकानन ! सब हरे रहो, लतिका घनी- कानन कुसुम ।। २२७॥