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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२९१

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वह चला, जैसे दृगजल ढरना। प्रणय बन्या ने किया पसारा कर गई प्लावित तन मन सारा प्रेम की पवित्र परछाई मे ललसा हरित विटप झाई म बह चला झरना। तापमय जीवन शीतल करना सत्य यह तेरी सुघराई मे प्रेम की पवित्र परछाईं मे॥ प्रसाद वाङ्गम्य ॥२३४