पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२९३

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प्रथम प्रभात . मनोवृत्तियां खग-कुल सी थी सो रही अन्त करण नवीन । मनोहर नीड मे। नील गगन सा शान्त हृदय था हो रहा बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही। स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल मन तुष्ट था अपने ही प्रच्छन विमल मकरन्द से। अहा | अचानक किस मलयानिल ने तभी, फूलो के सौरभ से पूरा लदा हुमा। आते ही कर स्पश गुदगुदाया मुझ, खुली आख, आनन्द दृश्य दिखला दिया। मनोवेग मधुकर सा फिर तो गूंज के मधुर मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा। वर्षा होने लगी कुसुम मकरन्द की, प्राण पपीहा बोल उठा कैसी छबि ने बाल अरण सी प्रकट हो शून्य हृदय को नवल राग रजित किया। सद्य स्नात हुआ मै प्रेम सुतीथ म, मन पवित्र उत्साह-पूण सा हो गया, विश्व, विमल मानन्द भवन सा हो गया, मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था। आनन्द मे प्रसाद वाङ्गमय ॥२३६॥