पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२९९

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वसन्त तू आता है फिर जाता है। जीवन में पुलकित प्रणय सदृश, यौवन की पहली कान्ति अकृश, जैसी हो, वह तू पाता है, हे वसन्त क्यो तू आता है ? पिक अपनी कूक सुनाता है, तू आता है फिर जाता है। बस, खुले हृदय से करुण कथा, बीती बातें कुछ मम व्यथा, वह डाल डाल पर जाता है फिर ताल ताल पर गाता है। मलयज मन्थर गति आता है, तू आता है फिर जाता है। जीवन को सुख दुख आशा सब, पतझड हो पूण हुई है अब, बिकसित रसाल मुसक्याता है, कर किसलय हिला बुलाता है । हे वसन्त क्यो तू आता है तू आता है फिर जाता है। 7 प्रसाद बाङ्गमय ।। २४२॥