पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३००

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किरण कौन? किरण | तुम क्या विखरी हो आज, रंगी हो तुम क्सिके अनुराग, स्वण सरसिज किंजल्क समान, उडाती हो परमाणु पराग। धरा पर झुकी प्राथना सदृश, मधुर मुरली सी फिर भी मौन,- क्सिी अज्ञात विश्व की विक्ल वेदना-दूती सी तुम अरण शिशु के मुख पर सविलास, सुनहली एट घुघगली कात, नाचती हो जैसे तुम कौन 7- उपा के चचल अथान्त। भला उस भोले मुख को छोड, और चूमोगी सिका मनोहर यह पैसा है नृत्य, फोन देता है सम पर ताल? म भाल, झरना ॥ २४३॥