पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३०९

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मिग्य पामा युगुमरा यह मागिा- रजित ६, प्रियतम में गर एगी नहीं। प्रियतम ! गाही मया सुमा उरित था। प्राण प्रदीप गिरता है भागेर बह- जिममें याधिस ग तुम्हाग देगए। जोरपा ! यया वयु गरिन अभिर भी तृप्त ही पर गरा तुम्हें ! सर पर है। योग इतने दिय मा! प्रान हो। हो जायेगा जय गिा मन फिर भी प्यार हमारा धायगा, होगी दया । सो पपा धुन्ध ग तुम-यह सोच लो, फिर, जेगा मा म भाये येमा परो। प्रसाद वाङ्गमय ।। २५२॥