पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३११

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कर शून्य हृदय म प्रेम-जलद माला कब फिर घिर आवेगी? वर्षा इन मांखा से होगी, पव हरियाली छावेगी? रिक्त हो रही मधु से मौरभ सूख रहा है आतप है, सुमन कली सिलकर कब अपनी पसुडियां बिखरावेगी? लम्बो विश्व कथा म सुख की निद्रा सी इन आखो मे- सरस मधुर छवि शान्त तुम्हारी कव आकर बस जावेगी? मन-मयूर कब नाच उठेगा कादविनी छटा लखकर, शीतल आलिंगन करने को सुरभि लहरिया आवेंगी? बढ उमग-सरिता मावेगी आद्र क्येि रूखी सिकता, सक्ल कामना स्रोत लीन हो पूण विरति क्ब मावेगी? प्रसाद वाङ्गमय ॥२५४॥