पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३१८

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निवेदन तेरा प्रेम हलाहल प्यारे, अब तो सुख से पीते हैं । विरह सुधा से बचे हुए हैं, मरने को हम जीते हैं। दौड दौड कर थका हुआ है, पड वर प्रेम पिपासा मे । हृदय सूव ही भटक चुका है, मृग मरीचिका आशा म॥ मेरे मरमय जीवन के हे सुधा-स्रोत | दिखला जाओ। अपनी आँखा के भामू से इसमो भी नहला जायो । डरो नही, जा तुमको मेरा उपालम्भ सुनना होगा। वेवल एक तुम्हारा चुम्बन इस भुग को चुप कर देगा ।। झरना ॥२६१॥