पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३२७

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मिलन इस हमारे और प्रिय के मिलन से स्वग आ कर मेदिनी से मिल रहा, कोकिलो का स्वर विपञ्ची नाद भी चन्द्रिका, मलयज पवन, मकरन्द औ' मधुप माधविकाकुसुम से कुज मे मिल रहे, सब साज मिलकर बज रहे आज इस हृदयाब्धि मे, बस क्या कहूँ। तुगतरल तरग ऐसी उठ रही- शीतकर शत शत उदय होने लगे। तारिकायें नील नभ मे आज ये, फूल की झालर बनी हैं शोभती । गन्ध सौरभ वायुमण्डल की तहे, अन्तरिक्ष विशाल मे हे मिल रही। चन्द्र-कर पीयूष वर्षा कर रहा । दृष्टि-पथ मे सृष्टि है आलोक्मय, विश्व वैभव से भरा यह धन्य है। हृदय-वीणा कर रही प्रस्तार अब, तीव्र पञ्चम तान की उरलास से। बेसुरा पिक पा नहीं सकता कभी, इस रसीली भूच्छना की मत्तता। प्रसाद वाङ्गमय ११२७० ॥