पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३३३

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हदय का सौदर्य नदी की विस्तृत वेला शान्त, अरुण मडल का स्वण विलास, निशा का नीरव चन्द्र-विनोद, कुसुम का हंसते हुए विकास । एक से एक मनोहर दृश्य, प्रकृति की क्रीडा के सब छद, सृष्टि मे सब कुछ है अभिराम, सभी मे है उनति या ह्रास । वना लो अपना हदय प्रशान्त, तनिक तव देखो वह सोदय, चन्द्रिका से उज्ज्वल आलोक, मल्लिका सा मोहन मृदुहास । अरण हो सकल विश्व अनुराग करण हो निर्दय मानव चित्त, उठे मधु लहरी मानस में, कूल पर मलयज का हो वास । प्रसाद वाङ्गमय ।। २७६ ॥