पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३३४

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प्रार्थना देख लो अपनी आखो से, दृश्य रमणीय रूप का याज। प्राणधन । सच तुमको है शपथ, तुम्हारा यह अभिनव है साजा ॥ उपा सौदयमयो मधु कान्ति अरण यौवन का उदय विशेप। सहज सुषमा मदिरा से मत्त, अहा । फैसा नैसर्गिक वेश। देखकर जिसे एक ही बार, हो गए हम भी है अनुरक्त । देख लो तुम भी यदि निज रूप, तुम्ही हो जाओगे आसक्त । दृष्टि फिर गई तुम्हारो, क्यिा-- सृष्टि ने मधु धारा मे स्नान । बह चली मदाकिनी मरन्द- भरी, करती कोमल क्लगान | प्राथना अन्तर की मेरी- यही जन्मान्तर की हो उक्ति । "जन्म हो, निरसू तब सौदय मिले इगित से जीवनमुक्ति ।।" राना"Dre"