पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उडा दो मत गुलाल सी हाय अरे अभिलाषायो की धूल । और ही रग नही लग लाय मधुर मजरिया जावें झूल ॥ विश्व मे ऐसा शीतल खेल हृदय मे जलन रहे, क्या वात । स्नेह से जलती ज्वाला झेल बना ली हाँ, होली की रात ॥ झरना ॥ २७९॥