पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३४५

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उपेक्षा करना क्सिी पर मरना यही तो दुख है । 'उपेक्षा करना' मुये भी सुख है, यही प्राथना हमारी। हमारे उर मे न सुख पाओगे, मिला है क्मिको कहा जाओगे? चपल यह चाल तुम्हारी। स्वच्छ आलोकित दीप बलता है, पखयुत कीडा सतत जलता है, वही है दशा हमारी। मोह या बदला ! कौन कह सकता, प्रेम या पीडा । कौन सह सकता, न हो वह दशा तुम्हारी। जलन छाती की बडी सहता हूँ, मिलो मत मुझसे यही कहता बडी हो दया तुम्हारी। तुम रहो शीतल हमे जलने दो, तमाशा देखो हाथ मलने दो, तुम्ह है शपथ हमारी ॥ प्रसाद वाङ्गम्य ॥ २९०॥