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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३६०

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बिजली माला पहने फिर मुस्क्याता था आंगन में हा, कोन वरस जाता था रस बूंद हमारे मन म? तुम सत्य रहे चिर सुन्दर । मेरे इस मिथ्या जग के थे केवल जीवन सगी करयाण कलित इस मग के । कितनी निजन रजनी मे तारो के दीप जलाये धारा में उज्ज्वल उपहार चढाये। स्वगङ्गा की गौरव था, नीचे आये प्रियतम मिलने को मेरे मै इठला उठा अकिञ्चन देखे ज्यो स्वप्न सवेरे। मधु राका मुसक्याती थी पहले देखा जब तुमको परिचित से जाने कब के तुम लगे उसी क्षण हमको। परिचय राका जलनिधि का जैसे होता हिमकर से ऊपर से किरणें आती मिलती हैं गले लहर से। में अपलक इन नयनो से निरखा करता उस छवि को प्रतिभा डालो भर लाता कर देता दान सुकवि को। आँसू ॥३०७॥