पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३६९

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मणि दीप लिये निज कर मे पथ दिखलाने को आये वह पावक पुञ्ज हुआ अब किरनो की लट विखराये। रुळी करुणा चढ गयी और भी ऊंची की वीणा दीनता दप बन बैठी साहस से कहती पीडा यह तीव्र हृदय की मदिरा जी भर कर-छक कर मेरी अब लाल आंख दिखलाकर मुझको ही तुमने फेरी । नाविक | इस सूने तट पर किन लहरो मे खे लाया इस बीहड वेला मे क्या अब तक था कोई आया। उम पार कहा फिर जाके तम के मलीन अञ्चल मे जीवन का लोभ नही, वह वेदना छन मय छल मे। प्रत्यावतन के पथ मे पद चिह्न न शेष रहा है। डूबा है हृदय मरुस्थल आँसू नद उमड रहा है। - प्रसाद वाङ्गमय ।। ३१६॥