पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३९८

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नागरी। बीती विभावरी जाग री। अम्बर पनघट में डुबो रहो- तारा घट ऊपा सग-कुल कुल कुल सा बोल रहा, क्सिलय का अञ्चल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई- मधु मुकुल नवल रम गागरी। अघरो म राग अमन्द पिये, अरवो मे मलयज वन्द क्येि- तू यव तक सोई है आली। आमों में भरे विहाग री! एहर ॥३४५॥ .