यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
आंखो से अलख जगाने को, यह आज भैरवी आई है। कपा सी आँखो में कितनी, मादकता भरी ललाई है। कहता दिगन्त से मलय पवन, प्राची की लाज भरी चितवन- है रात घूम आई मधुवन, यह आलस की अंगराई है। लहरो में यह क्रीडा चचल, सागर का उद्वेलित अञ्चल । है पोछ रहा आँखें छलछल, किसने यह चोट लगाई है? प्रसाद वाङ्गमय ।। ३४६ ॥