पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४०१

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अन जागो जीवन के प्रभात । वसुधा पर ओस बने खिरे हिमक्न आंसू जो क्षोभ भरे ऊपा बटोरती अरण गात । अब जागा जीवन के प्रभात । तम नयनो की तारायें सब- मुंद रही किरण दल में हैं अब, चल रहा सुखद यह मलय वात । अब जागो जीवन के प्रभात । रजनी की लाज समेटी तो, क्लरव से उठ पर भेंटो तो, अरुणाचल में चल रही वात जागो अब जीवन के प्रभात । 9 प्रसाद वाङ्गमय ।। ३५०॥