पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४०३

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कितने दिन जीवन जल निधि मे- विकल अनिल से प्रेरित होकर लहरी, कूल चूमने चल कर उठती गिरती सी रक रुक कर सृजन करेगी छवि गति विधि में । क्तिनी मधु-सगीत निनादित गाथाएँ निज ले चिर-मचित तरल तान गावेगी वचित! पागल सी इस पथ निरवधि में । दिनकर हिमकर तारा के दल इसके मुकुर वक्ष मे निमल चिन बनायेंग निज चचल। आशा की माधुरी अवधि मे। प्रसाद वाङ्गमय ।। ३५२॥