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व कुछ दिन क्तिने सुन्दर थे? जव सावन धन सघन-चरसते- इन आंखो को छाया भर थे। मुरधनु रजित नवजलधर से- भरे, क्षितिज व्यापी अम्बर मे, मिरे चूमते जव सरिता के, हरित दूर युग मधुर अधर में। प्राण पपोहा के स्वर वाली- बरस रही थी जर हरियाली- ग्म जलपन मारती मुकुल से- जो मदमाते गन्ध विधुर थे। त्रि गोचती थी जब चपग नील मेघ-गट पर वह विरग मेरो जीवन-म्मृति के जिगम-- गिर उटले रुप मधुर थे। पहा ॥३.२॥ 22