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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४१३

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काली अखिो वा अन्धकार जब हो जाता है वार पार, मद पिये अचेतन कलाकार उन्मीलित करता क्षितिज पार- वह चित्र । रग का ल बहार जिसमे है केवल प्यार प्यार । केवल स्मितिमय चादनी रात, तारा किरनो से पुलक गात, मधुपो मुकुलो के चले घात, आता है चुपके मलय वात, सपनो के बादल का दुलार । तब द जाता है यूँद चार । तब लहरो सा उठ कर अधीर तू मधुर व्यथा सा शून्य चीर, सूखे किसलय सा भरा पीर गिर जा पतझड का पा समीर। पहने छाती पर तरल हार । पागल पुकार फिर प्यार प्यार । प्रसाद वाङ्गमय ॥३६२॥