म और जड की परवशता मे निष्ठित है। प्रकारान्तरेण मे चेतन के ही क्षिप्त-अनगुण्ठित भाव का निवचा जड द्वारा होता है। उभय म तत्व प्राधान्य विलक्षण नहीं है एक ही है। जल के तरलत्व और प्रवाह-म्वाधीनता को जल और उस जल की ही अवगुण्ठित भावगत सघनता को मि कहा जाता है । इस मूलभूत प्रश्न और उसका समाधान लेकर कामायनी प्रथित है जहा वह एक ही तत्व अपने गतिमय बहिरल्लास म जल कहा जाता है और अन्तविलासित स्थितिमयता मे हिम होता है। उसको प्राविधिकआख्या कही प्रकृति-पुस्प तो वही शक्ति और शिव द्वारा दी जाती है। 'एक तत्व की थी प्रधानता कहो उसे जड या चेतन'। और फिर अन्त मे उभय भाव चैतन्य समरस हो समाधान करते हैं उम प्रश्न का जिस मान खण्डश मनुज की स्थूल अनुषग प्राय विपमता के निरसन म ही समाहित मान लिया गया है-'समरस ये जड या चेतन 'तय' 'सुन्दर साहार' बनता है जिसमे समान-चेतना का विलास होता है अर्थात् जड और चेतन भिन मूत्य वाले नही रहते ऐसे चेतन विलास के अन्तभुक्त आनन्द का अखण्ड भाव चमत्कृत होता है । विवा आनन्द के भी विगलित भेद सस्कारोपरि 'चेतनता एक विलसती' है। ध्यान रहे कि आनन्द मे लेशत उसी प्रकार द्वैत रहता है जिस प्रकार ईश्वरतत्व मे अधिकार मल और सदा शिवतत्व म भोगमल रहता है और शिव स्वशक्ति की पृथगानुभूति म मूल अज्ञान अथवा महाशन्य पदवाच्य होता है । सुतराम् कामायनी के इस अन्तिम छद चेतनता एक विलसती आनन्द अखण्ड घना था म वतमानता अद्वय चैत य के विलास या स्फुरण की है जहा आनद उपरत है। अस्तु जड और चेतन प्रसग म सयोजक विन्दु का भी कामायनी मे चिन्तन है जड और चेतन की परस्पर समवयभूमि का भी चिन्तन है और, यह सयोजक वि दु या समन्वय भूमि स्वयमेव कामायनी है । जो, अपने पिता का काम के शब्दो म- यह लीला जिसकी विक्म चली वह मूलशक्ति थी प्रेमाला उमका सन्देश सुनाने को ससृति में आई यह अमला हम दानो को सन्तान वही कितनी सुन्दर भाली भाली रगो ने जिनसे खेला हो ऐसे फूला की वह डाली जड चेतनता की गाठ वही सुलझन है भूल सुधारो की वह शीतलता है शातिमयी जीवन के उष्ण विचारो की और वस्तुत कामायनी मनु के ऐहिर-आमुग्यिक, जड़-चेतन उभय स्तरा प्रसाद वाङ्गमय ॥५०॥
पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४३
दिखावट